Reverse Migration की Success Story: Ravi Kemwal ने की Kiwi Farming से बदली Tehri की तस्वीर

टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)। महानगरों की चकाचौंध को पीछे छोड़ जब एक युवा अपने गांव की मिट्टी से जुड़ता है, तो वह सिर्फ अपनी नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की तकदीर बदलने का साहस करता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है जनपद टिहरी गढ़वाल के बागी गांव निवासी रवि केमवाल ने। रिवर्स माइग्रेशन की मिसाल बनते हुए उन्होंने कीवी की बागवानी को अपनाकर स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता का सफल मॉडल पेश किया है।
बैंगलोर और चंडीगढ़ में एक आरामदायक जीवन और मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर गांव लौटे रवि ने साल 2019 में अपने पुश्तैनी बंजर खेतों को फिर से जीवंत करने का संकल्प लिया। शुरूआत में आलू, अदरक और प्याज की खेती से उन्होंने अपने खेतों को सींचा, लेकिन असली मोड़ तब आया जब उन्होंने हिमाचल प्रदेश के सोलन से एलिसन प्रजाति की कीवी मंगाकर बागवानी शुरू की।
300 रुपए किलो बिक रही है पहाड़ी कीवी, चंबा से लेकर ऋषिकेश तक है डिमांड”
शुरू में छोटे साइज की वजह से कीवी की मार्केट वैल्यू कम रही, लेकिन 2023 में फसल का साइज और क्वालिटी सुधरने के बाद बाजार में उनकी कीवी की मांग तेज़ हो गई। अब चंबा, नागड़ी, गजा, आगराखाल और नरेन्द्रनगर की लोकल मार्केट में ही पूरी सप्लाई खप जाती है।
रवि बताते हैं, “इस बार 10 क्विंटल कीवी उत्पादन का लक्ष्य है, जिससे करीब 3 लाख रुपए का मुनाफा होने की उम्मीद है।” उन्होंने बताया कि 2024 में भी कीवी से 1 लाख से अधिक की आय हुई थी।
बिना योजना और सब्सिडी के भी हो सकते हैं आत्मनिर्भर”
रवि केमवाल का मानना है कि यदि संकल्प और मेहनत हो, तो बिना सरकारी योजना या सब्सिडी के भी सफल स्वरोजगार की राह पर बढ़ा जा सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि राज्य सरकार की 50% से 80% सब्सिडी वाली योजनाएं किसानों के लिए एक वरदान हैं। खासकर ड्रैगन फ्रूट जैसी फसलों पर 80% सब्सिडी भविष्य में पहाड़ी क्षेत्रों के लिए बेहद लाभदायक साबित होगी।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बना रहा नए खरीदारों से सेतु”
आज के डिजिटल दौर में रवि केवल खेती तक सीमित नहीं हैं। वह ‘Pahaadi Life/चंींकप-सपमि’ नाम से यूट्यूब चैनल चला रहे हैं जहां वह खेती-बाड़ी और ग्रामीण जीवन के अनुभव साझा करते हैं। सोशल मीडिया से जुड़े खरीदार भी अब सीधे उनके उत्पाद खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं।
रिवर्स माइग्रेशन ने बदली ज़िंदगी”
चंडीगढ़ से पढ़ाई और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से MBA (IT) करने के बाद रवि ने टोयोटा जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में इंजीनियर के तौर पर काम किया, लेकिन कोरोना काल के दौरान गांव लौटने के फैसले ने उनकी ज़िंदगी को नया मोड़ दे दिया।