टिहरी गढ़वाल

Zero से शुरू किया और Hero बन गई—ये है उषा नकोटी की कहानी

200 खरगोशों से शुरू किया ऊन व्यापार, आज बन गईं महिला सशक्तिकरण की ब्रांड

चंबा (टिहरी गढ़वाल)। जहां एक ओर आज की युवा पीढ़ी रोजगार के लिए बड़े शहरों का रुख कर रही है, वहीं टिहरी जनपद के चंबा ब्लॉक की निवासी उषा नकोटी गांव में रहकर ही नारी सशक्तिकरण की प्रेरणादायक मिसाल पेश कर रही हैं। उषा ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि 25 से 30 ग्रामीण महिलाओं को भी स्वरोजगार से जोड़कर उनके जीवन की दिशा बदल दी है।

हथकरघा उद्योग के क्षेत्र में सक्रिय उषा आज अंगोरा ऊन से बने शॉल, स्वेटर, मफलर, टोपी, कोट, कंबल और मौजे जैसे दर्जनों उत्पाद तैयार कर रही हैं। ये उत्पाद न केवल स्थानीय बाजार में बल्कि विभिन्न राज्यों की प्रदर्शनियों में भी बड़ी लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं।


2002 से शुरू की यात्रा, आज बना लिया अपना मुकाम

उषा नकोटी ने वर्ष 2002 में उद्यमिता की राह पर कदम रखा था। टिहरी गढ़वाल उद्योग विभाग से हथकरघा का प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने इस व्यवसाय की बारीकियों को सीखा। शुरुआत में छोटे पैमाने पर उत्पादन हुआ, लेकिन गुणवत्ता और परिश्रम के बल पर उनके उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी।

समय के साथ उन्होंने पांच हथकरघा मशीनों और तीन निटिंग मशीनों की मदद से अपने उत्पादन को विस्तार दिया। आज वह अपनी दुकान ‘अंगोरा वस्त्र विक्रय भंडार, चंबा‘ के माध्यम से न केवल खुद की बल्कि अन्य ग्रामीण महिलाओं की भी आजीविका चला रही हैं।


30000 रुपये प्रतिमाह की आय, साथ ही महिलाओं को भी ₹300 प्रतिदिन रोजगार

उषा नकोटी आज हर महीने लगभग ₹30,000 की नियमित आय अर्जित कर रही हैं। यही नहीं, उनके वस्त्र भंडार में काम करने वाली महिलाएं प्रतिदिन ₹300 की आमदनी कर रही हैं। यह ग्रामीण महिलाओं के लिए एक नई सुबह की तरह है, जहां वे घरेलू जिम्मेदारियों के साथ-साथ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन रही हैं।


अंगोरा ऊन से बने वस्त्रों की देशभर में मांग

अंगोरा ऊन के उत्पादन में भी उषा ने नया अध्याय जोड़ा है। वर्तमान में वे 200 से अधिक अंगोरा खरगोशों का पालन कर रही हैं, जिससे उन्हें ऊन उत्पादन के लिए बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। यह ऊन उनके उत्पादों को विशिष्टता प्रदान करता है। अंगोरा शॉल और स्वेटर की कीमत ₹2000 से ₹3000 तक होती है, जो ग्राहकों को न केवल गर्माहट बल्कि पारंपरिक कला की झलक भी देती है।


प्रदर्शनियों से मिल रहा नया बाजार, बढ़ रहा आत्मविश्वास

उद्योग विभाग और भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में भाग लेकर उषा अपने उत्पादों को देश के कई हिस्सों तक पहुँचा चुकी हैं। उन्हें न केवल इन आयोजनों से बेहतर मंच मिला है, बल्कि सीधे ग्राहकों से जुड़कर विपणन कौशल भी विकसित हुआ है। वे जिला उद्योग केंद्र व खादी ग्रामोद्योग की प्रदर्शनियों में भी नियमित भाग लेती हैं।


स्वयं सहायता समूहों की अगुवा बनीं उषा नकोटी

उषा नकोटी सिर्फ एक उद्यमी नहीं, बल्कि एक नेत्री भी हैं। वे ‘कुटिल उद्योग कल्याण समिति’ की अध्यक्ष हैं और इसके अंतर्गत 12 स्वयं सहायता समूह सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। ये समूह बुनाई, सिलाई, दस्तकारी और अन्य लघु उद्योगों में कार्य कर रहे हैं। इससे न केवल सामाजिक समरसता बढ़ रही है बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण का मार्ग भी प्रशस्त हो रहा है।


प्रेरणा की प्रतिमूर्ति हैं उषा नकोटी

आज उषा नकोटी का नाम चंबा ही नहीं, बल्कि पूरे टिहरी जनपद में प्रेरणा और आत्मनिर्भरता की प्रतीक के रूप में लिया जाता है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि अगर संकल्प मजबूत हो, तो संसाधनों की कमी भी बाधा नहीं बनती। उषा की कहानी आज हजारों महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा दे रही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!