उत्तराखंड ताज़ाथत्यूड

पहाड़ की महिलाओं ने अपने पहनावे से बनाई हैं उत्तराखंड की पहचान।

%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A5%9C%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82%20%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%20%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82%20%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%A4

थत्यूड़: आज जहां फैशनिकरण से पूरा समाज अछूता नहीं है वही आज भी चमोली जनपद के सीमांत ब्लाक देवाल का अंतिम गांव बलाड़ की महिलाएं अपनी पूर्वजों के वेशभूषा,रीति रिवाजों व परंपराओं को निभा रहे हैं यही पहनावे व पोशाक की परंपरा क्षेत्र की पहचान बनाई हुई है।

पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं उत्तराखंड के कई गांव आज भी ऐसे हैं जो अपने पहनावे, पोशाक, रीति रिवाजों व परम्पराओं से अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं जितनी सुंदर इनके वेशभूषा व पहनावे हैं उतने ही सुंदर, खूबसूरत जगह में ये लोग रहते हैं आज इन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने की जरुरत हैं और इन खूबसूरत स्थानों, पहनावे की पोशाक को पर्यटन से जोड़ा जाय ताकि ये परम्परा भी बची रहे और इन पिछड़े क्षेत्रों का विकास भी हो सके। मंजू देवी कहती हैं ये पिछोड़ा पहनावे की परंपरा हमारे बुजुर्गों की देन हैं इसे हम अपने हर कार्य में पहनते हैं वही आनन्दी देवी कहती हैं गांव में शादी, नामकरण, देवपूजन जो कार्य होते हैं हम इन्ही वस्त्रों को पहनते हैं यही पहनावे की पोशाक हमारी व क्षेत्र की पहचान है। दिमती देवी, तुलसी देवी, यशोदा देवी, मानुली देवी, बलमा देवी, नरूली देवी, आनुली देवी, अंजना देवी, कमला देवी, गोबिन्दी देवी, पुष्पा देवी, बिमला देवी, देवकी देवी, रेखा देवी आदि थे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!