जानिए उत्तराखंड के मौण मेले की विशेषताएँ: नदी में मछलियां पकड़ने का ऐतिहासिक उत्सव

रिपोर्ट– मुकेश रावत
थत्यूड़। उत्तराखंड अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से एक अनोखी परंपरा है मौण मेला, जिसे साल में एक बार अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने के ऐतिहासिक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। मसूरी के नजदीक जौनपुर रेंज में यह मेला इस बार शनिवार को आयोजित हुआ। इस मेले को लेकर ग्रामीणों में खासा उत्साह देखा गया।
उत्सव और परंपरा का संगम
मौण मेले के दौरान हजारों की संख्या में बच्चे, युवा और वृद्ध अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने के लिए उतरते हैं। मौण नामक पाउडर, जो टिमरू के छाल से बनाया जाता है, को नदी के पानी में मिलाया जाता है, जिससे मछलियां कुछ समय के लिए बेहोश हो जाती हैं और उन्हें पकड़ना आसान हो जाता है। ग्रामीण पारंपरिक औजारों जैसे कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल और हाथों का इस्तेमाल करते हैं।
मछलियों का शिकार और नदी की सफाई
स्थानीय जब्बर सिंह वर्मा, सुरेन्द्र सिंह कैन्तुरा आदि लोगों का कहना है कि मौण मेला न सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव है बल्कि इसका उद्देश्य नदी और पर्यावरण का संरक्षण भी है। टिमरू पाउडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता और इससे मछलियों को अस्थायी रूप से बेहोश किया जाता है। वहीं, मेला समाप्त होने के बाद नदी की सफाई भी हो जाती है।
ऐतिहासिक महत्व
इस मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था। तब से हर साल यह मेला जौनपुर में आयोजित होता है। मेले में टिहरी नरेश स्वयं अपनी रानी के साथ आते थे और सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहते थे। सामंतशाही के पतन के बाद अब सुरक्षा की जिम्मेदारी ग्रामीणों ने खुद उठा ली है।
सांस्कृतिक धरोहर
जौनपुर, जौनसार और रंवाई इलाकों में परंपराओं को जीवित रखने की परंपरा आज भी जीवित है। पलायन और बेरोजगारी के बावजूद, इन क्षेत्रों के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संभालने में लगे हैं और इन्हें अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
अन्य मुख्य बातें
- नृत्य और संगीत: मेले के दौरान ढोल-नगाड़ों की थाप पर ग्रामीण लोकनृत्य भी करते हैं।
- विदेशी पर्यटक: मेले में विदेशी पर्यटक भी हिस्सा लेते हैं, जो इस अनूठे मेले का अनुभव करने आते हैं।
- सुरक्षा और व्यवस्था: मेले के दौरान सुरक्षा की जिम्मेदारी अब ग्रामीणों ने खुद संभाल रखी है।
इस प्रकार, मौण मेला न सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि यह उत्तराखंड की धरोहर और परंपराओं को जीवित रखने का प्रतीक भी है।