देहरादून I बचपन से मसल्स इतनी कमजोर हैं कि प्राची अपने पैरों पर बिना सहारे खड़ी भी नहीं हो पाती है। बावजूद इसके प्राची ने कभी हिम्मत नहीं हारी। अपनी इसी हिम्मत और हौसले के दम पर प्राची ने अब देश के प्रसिद्ध प्रबंधन संस्थान आईआईएम कोलकाता में एंट्री पाई है। प्राची का सपना मल्टीनेशनल कंपनी में काम करना है।
देहरादून के टर्नर रोड क्लेमेंटटाउन निवासी प्राची जैन बचपन से ही मांसपेशियों की कमजोरी का शिकार है। दिव्यांग होने के बावजूद उनकी सोच और हौसला दिव्य है। प्राची ने सेंट ज्यूड्स से 87.4 प्रतिशत अंकों के साथ 10वीं, 86.24 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं पास की। इसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए यूपीईएस में दाखिला लिया। यहां से कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में बीटेक किया। इस बीच उन्होंने आईआईएम दाखिलों की प्रवेश परीक्षा कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) दिया। पहले ही प्रयास में उन्होंने 77 परसेंटाइल स्कोर किया। आईआईएम अहमदाबाद और बंगलुरू को छोड़कर सभी आईआईएम से उन्हें बुलावा आया है, लेकिन प्राची ने कोलकाता चुना है। प्राची का कहना है कि यह बेस्ट ऑप्शन है। प्राची के शिक्षक टाइम इंस्टीट्यूट के निदेशक राजीव कुकरेजा ने बताया कि प्राची ने बीटेक फोर्थ ईयर के दौरान ही कैट क्रैक किया जो कि खुद में मिसाल है।
मम्मी-पापा ने हर पल बढ़ाया हौसला
प्राची के पिता अजीत कुमार जैन पेशे से बिजनेसमैन हैं जबकि मां प्रीति जैन गृहिणी हैं। बेटी की इस कामयाबी पर दोनों बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि बचपन में जब पता चला कि बेटी मांसपेशियों की कमजोरी से ग्रस्त है तो उन्होंने हर पल उसका हौसला बढ़ाया। आज बेटी ने कामयाबी पाई है तो उनके लिए इससे बड़ी खुशी कुछ नहीं हो सकती।
इंजीनियरिंग के बाद नौकरी छोड़ने का फैसला
प्राची को बीटेक करने के बाद आईटीसी कंपनी में जॉब भी मिल गई। पैकेज 3.6 लाख रुपये है, लेकिन आईआईएम से पढ़ाई करने के लिए प्राची ने नौकरी छोड़ने का फैसला लिया।
डांसिंग और एडवेंचर का शौक
भले ही प्राची बिना सहारे चल न पाती हो, लेकिन डांसिंग और एडवेंचर स्पोर्ट्स का शौक है। वह कभी-कभी छड़ी के सहारे से ही डांस करती हैं। इसके अलावा वह एक बार राफ्टिंग भी कर चुकी हैं। अब उनका सपना बंजी जंपिंग करना है।
कभी उम्मीद का दामन न छोड़ना
प्राची जैन ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा है कि जीवन में परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल क्यों न हों, कभी उम्मीद का दामन न छोड़ना। प्राची का कहना है कि उम्मीद पर ही पूरी दुनिया कायम है, लेकिन इसके लिए हार्डवर्क ज्यादा जरूरी है। हार्डवर्क का कोई विकल्प नहीं है।