देहरादून I राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का मसौदा पास हुआ तो सरकारी स्कूलों में प्रधानाचार्यों के 50 फीसदी पदों को सीधी भर्ती से भरा जाएगा। जबकि 50 फीसदी पद वरिष्ठता के आधार पर भरे जाएंगे। स्कूल परिसर के सुचारु एवं प्रभावी संचालन के लिए प्रधानाचार्य के पास 5 से 10 लाख रुपये की एक निधि भी होगी।
शिक्षा विभाग में वर्तमान में प्रधानाचार्यों के शत प्रतिशत पदों को वरिष्ठता के आधार पर भरा जाता है, यहां सीधी भर्ती का कोई प्रावधान नहीं हैं, लेकिन नई शिक्षा नीति में यह व्यवस्था की जा रही है कि 50 फीसदी पदों को विभागीय परीक्षा एवं 50 फीसदी को वरिष्ठता के आधार पर भरा जाए। प्रदेश सरकार ने इस सुझाव पर सहमति जताते हुए इसका फाइनल ड्राफ्ट केंद्र सरकार को भेज रही है।
इसमें केंद्र को यह सुझाव भी दिया गया है कि प्रधानाचार्या के पास आकस्मिक मानव संसाधन एवं रखरखाव के लिए एक निधि की व्यवस्था हो। हालांकि उत्तराखंड राजकीय प्रधानाचार्य एसोसिएशन सरकार के इस सुझाव से सहमत नहीं है। एसोसिएशन का कहना है कि प्रधानाचार्यों के सभी पदों को वरिष्ठता के आधार पर ही भरा जाना चाहिए। यदि इन पदों को सीधी भर्ती से भरा गया तो विभाग में 35 से 36 वर्षों से सेवा कर रहे प्रधानाध्यापक पदोन्नति से वंचित रह जाएंगे।
राज्य शिक्षक भर्ती बोर्ड के गठन की भी है तैयारी
नई शिक्षा नीति में राज्य शिक्षक भर्ती बोर्ड के गठन की भी तैयारी है। यदि भर्ती बोर्ड गठित हुआ तो प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों की कमी दूर होगी। बता दें कि विभाग में वर्तमान में शिक्षकों के लगभग 4000 एवं प्रधानाचार्यों के 800 पद पिछले काफी समय से रिक्त हैं। इन पदों को भरने के लिए विभाग की ओर से लोक सेवा आयोग एवं अधीनस्थ चयन सेवा आयोग को कई बार लिखा जा चुका है, इसके बावजूद भर्ती में देरी से कई स्कूलों में शिक्षकों एवं प्रिंसिपलों की कमी बनी है।
राज्य शिक्षा आयोग के गठन को सरकार नहीं है तैयार
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में राज्य शिक्षा आयोग के गठन का भी सुझाव है, लेकिन प्रदेश सरकार इसके लिए तैयार नहीं हैं। इसके गठन को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का मत है कि प्रदेश में पहले से बाल आयोग गठित है। राज्य शिक्षा आयोग के गठन से राज्य पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ेगा।
पब्लिक स्कूल नहीं कर सकेंगे पब्लिक शब्द का उपयोग
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में स्पष्ट किया गया है कि निजी स्कूल सार्वजनिक शब्द का उपयोग नहीं करेंगे। पब्लिक शब्द का उपयोग केवल सरकारी स्कूलों एवं वित्त पोषित स्कूलों द्वारा किया जाएगा।