उत्तराखंड ताज़ाथत्यूड

खुशहाली और समृद्धि के प्रतीक ‘ दुबड़ी ‘ त्योहार की रही धूम ….

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 भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला दुबड़ी त्यौहार भी जौनपुर का पौराणिक त्यौहार है इसी त्यौहार के पश्चात ही अन्य सभी त्योहारों का होता है आगमन 
थत्यूड़| जौनपुर विकासखंड के ग्राम ठक्कर कुदाऊं,डिगोन,मुंगलोडी खेडा तल्ला खेड़ा मल्ला ठिक्क,किंशु भुयासारी,तेवा,बंगशील,ओंतड़,ऐरी, शीर्ष,  आदि दर्जनों गाँव में खुशहाली और समृद्धि के प्रतीक ‘ दुबड़ी ‘ त्योहार की रही धूम पारम्परिक वाध्ययंत्र ढोल , दमाऊ की थाप पर जमकर थिरके ग्रामीण  सामजिक कार्यकर्ता संजय गुसाईं व बृजमोहन सिंह रांगड़ ने जानकारी देते हुए कहा कि यमुनाघाटी और जौनपुर क्षेत्र अपनी अनूठी संस्कृति एवं रीतिरिवाजों के लिए पुरे प्रदेश में जाना जाता है भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला दुबड़ी त्यौहार भी जौनपुर का पौराणिक त्यौहार है इसी त्यौहार के पश्चात ही अन्य सभी त्योहारों का आगमन होता है  दुबड़ी के त्यौहार को मनाने की तैयारी स्वछता अभियान से शुरू होती है दुबड़ी से एक दिन पूर्व गाँव की सभी महिलायें अपने घरों आंगनो ,पंचायती चौक एवं रास्तों की सामूहिक रूप से साफ़ सफाई करती है अगले दिन दोपहर के समय गाँव के पुरुष एवं बच्चे गाँव के खेतों में जो भी फसलें होती है उन्हें उखाड़कर लाते है और उस सभी प्रकार की फसलों को गाँव के पंचायती चौक में इक्क्ठा करके एक बड़ा गट्ठर बनाते  है गाँव के सयाणों और बुजुर्गों के निर्देशन में उस फसलों के गट्ठर को एक मीटर गहरे खड्ढे में गाढ़ा  जाता है  इसी को स्थानीय भाषा में दुबड़ी कहा जाता है संध्या के समय गाँव की सभी महिलाएं पंचायती चौक में पहुंचकर दुबड़ी की पूजा अर्चना करती है और अपने गांव की खुशहाली एवं समृद्धि के लिए अपने भूमि देवता, कुल व इष्ट  देवता की आराधना करती है इसी बीच गाँव में आये मेहमानो का आदर- सत्कार का कार्यक्रम भी चलता रहता है | दुबड़ी के त्यौहार के दिन स्थानीय अनाज झंगोरा व् कोणी के आटे को पीसकर उसे पकाकर उसकी छोटी छोटी गोलियां बनाई जाती है ,  यह दुबड़ी त्यौहार का विशेष पकवान होता है जिसे खांड ( चीनी का बुरा ) और शुद्ध घी के साथ प्रसाद के रूप में खाया जाता है सभी लोग एक दूसरे को ककड़ी और मक्की भेंट देते है दुबड़ी पूजन के समय ही गांव के गाँव के पुरुष और मेहमान पारम्परिक वाद्य यंत्र ढोल और दमाऊ की ताप पर रासो एवं तांदी नृत्य करते है और ढोल की थाप से से पूजा कर रही महिलाओं को मुख्य दुबड़ी से दूर हो जाने का संकेत दिया जाता है ततपश्चात जैसे ही सभी महिलाये दुबड़ी से दूर होती है सभी पुरुष सामूहिक रुप से दुबड़ी को उखाड़कर उनमे लगी फसलों को हवा में उछालकर अगले वर्ष भी अच्छी फसल की कामना के वास्ते उन फसलों को अपने घरो के छत पर रख देते है और पूरी रात नाचगानो के साथ अगले दिन सुबह मेहमानो की पौणाई ( सत्कार ) किया जाता है और दुबड़ी का त्यौहार संम्पन्न होता है एक मान्यता ये भी है जौनपुर के कुछ ही गाँव के दुबड़ी का त्यौहार मनाया जाता है जिस नहीं में नहीं मनाया जाता है यदि दुबड़ी के त्यौहार के दिन उस गाँव में कन्या का जन्म होता है तो वहा भी दुबड़ी का त्यौहार मनाने की परम्परा शुरू हो जाती है

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