देहरादून

कारगिल विजय दिवसः ऐसे उपेक्षा हुई तो कौन भेजेगा बेटे और पति को सरहद पर

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देहरादून I कारगिल युद्ध को 20 साल बीत चुके हैं। लेकिन, सिस्टम की लापरवाही के कारण शहीदों के आश्रित आज भी अपने हक के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इन्हें नौकरी की बात तो दूर कई के परिजनों को जमीन तक नहीं मिल पाई है।
अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक के पास आश्रित अपनी फरियाद पहुंचाने के लिए ऐड़ियां घिस चुके हैं, लेकिन आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। इससे आश्रितों में बेहद नाराजगी है। कई यह कहने को मजबूर हैं कि देश के लिए कुर्बानी देने वालों के परिजनों की ऐसी उपेक्षा हुई तो आगे कौन भेजेगा अपने बेटे और पति को सरहद पर।
कारगिल युद्ध के बाद केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार ने शहीद के आश्रितों के लिए कईं घोषणाएं की थी। इसमें उन्हें पांच बीघा भूमि, एक बेटे को नौकरी, पेट्रोल पंप, ग्रीन कार्ड आदि शामिल था। लेकिन इनमें से केंद्र की ओर से की गई घोषणाएं तो लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन राज्य सरकार की घोषणाएं अब तक पूरी नहीं हो पाई है।

कारगिल शहीद नायक सुबाब सिंह की पत्नी मुन्नी देवी ने बताया कि कई सालों बाद उन्हें पेट्रोल पंप का आवंटन हुआ है। लेकिन जमीन आज तक नहीं मिली। वह 20 साल से इसके लिए चक्कर काट रही हैं। लेकिन आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला।
नौकरी के लिए भी कई बार गुहार लगा चुकी हूं। लेकिन कभी फाइल सचिवालय में बताई जाती है तो कभी कहीं। देहरादून के 19 जवान कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। सभी को सरकार ने पांच बीघा भूमि देने का वायदा किया था।

लेकिन, अभी तक मात्र चार शहीदों की वीरांगनाओं को जमीन मुहैया हो पाई है। उनमें से भी एक की जमीन पर भूमाफिया कब्जा जमाए बैठा है जबकि चार को कागजों में जमीन मुहैया हुई है कब्जा आज तक नहीं दिया गया। 
ग्रीन कार्ड बना शोपीस
शहीदों के परिजनों को कहीं कोई दिक्कत न हो इसके लिए जिला सैनिक कल्याण पुनर्वास विभाग की ओर से परिजन को ग्रीन कार्ड दिया गया था। लेकिन यह कार्ड अब महज शोपीस बने हैं। शहीद नायक सुबाब सिंह की पत्नी मुन्नी देवी की माने तो इस कार्ड को देखकर तो अब सब मुंह फेर देते हैं।

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