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17वीं लोकसभा के लिए प्रोटेम स्पीकर चुने गए 6 बार से BJP सांसद वीरेंद्र कुमार

virendra tikamgarh 03 09 2017

17वीं लोकसभा के लिए भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉक्टर वीरेंद्र कुमार को प्रोटेम स्पीकर चुना गया है. इससे पहले लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर के लिए बरेली से सांसद संतोष गंगवार और सुल्तानपुर से सांसद मेनका गांधी का नाम सामने आए थे. हालांकि बीजेपी नेतृत्व ने दोनों नाम खारिज कर दिया था.

बचपन से ही आरएसएस से जुड़े वीरेंद्र कुमार मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से छह बार लोकसभा सदस्य और भाजपा के दलित चेहरा हैं. कुमार अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं और अक्सर शहर में कहीं भी आने जाने के लिए लिफ्ट लेते देखे जाते हैं.


उनके करीबी सहयोगी ने बताया था कि – ‘ जब वीरेंद्र दिल्ली आते हैं, तो वह किसी भी आम आदमी की तरह स्टेशन पर उतरते हैं और अपने घर तक पहुंचने के लिए एक ऑटो-रिक्शा लेतें है.’


कौन हैं वीरेंद्र कुमार


27 फरवरी, 1954 को जन्मे कुमार 1996 में सागर से 11 वीं लोकसभा में पहली बार सांसद बने. तब से उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2004 तक सागर से जीते.  परिसीमन के बाद उन्होंने 2009 और 2014 में टीकमगढ़ सीट से चुनाव जीते.


छह चुनावों में  सिर्फ तीन साल के अंतराल में हुए थे 1996, 1998 और 1999.  प्रतिष्ठित डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर से अर्थशास्त्र और पीएचडी इन चाइल्ड लेबर में पीएचडी और अर्थशास्त्र में एम ए कुमार ने अपना करियर आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में शुरू किया और साल 1975 में लोकनायक  जय प्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए  क्रांति आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था.


क्यों नियुक्त किया जाता है प्रोटेम स्पीकर?


प्रोटेम स्पीकर, चुनाव के बाद पहले सत्र में स्थायी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के चुने जाने तक संसद का कामगाज स्पीकर के तौर पर चलाता है यानि संसद का संचालन करता है. सीधे कहें तो यह कामचलाऊ और अस्थायी स्पीकर होता है. बेहद कम वक्त के लिए इन्हें चुना जाता है.


अभी तक ज्यादातर मामलों में परंपरा रही है कि सदन के वरिष्ठतम सदस्यों में से किसी को यह जिम्मेदारी दी जाती है. प्रोटेम स्पीकर तभी तक अपने पद पर रहते हैं जब तक स्थायी अध्यक्ष का चयन न हो जाए.


हालांकि केवल चुनावों के बाद ही प्रोटेम स्पीकर की जरूरत नहीं होती बल्कि उस हर परिस्थिति में प्रोटेम स्पीकर की जरूरत पड़ती है जब संसद में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद एक साथ खाली हो. यह उनकी मृत्यु की स्थिति के अलावा दोनों के साथ इस्तीफा देने की परिस्थितियों में हो सकता है.

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