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वन्य जीव प्राणी सुरक्षा सप्ताह के अंतर्गत भद्रिगाड रेंज अधिकारी मेधावी कृति ने बच्चो को बताया वनों में छोटे बड़े जानवरो के महत्व

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जानवर को महज जानवर न समझें, बल्कि अपना अस्तित्व बनाए रखने का जरिया समझें : मेधावी कृति

नैनबाग। वन्य जीव प्राणी सुरक्षा सप्ताह के अंतर्गत 2 अक्टूबर 2022 मसूरी वन प्रभाग के भद्रिगाड रेंज के द्वारा प्रथिमिक विद्यालय सुमनक्यारी में छोटे छोटे बच्चो के साथ गांधी व लाला बहादुर शास्त्री जयंती मनाई गई साथ ही साथ वनों में छोटे बड़े जानवरो के महत्व को भी बताया गया।

भद्रिगाड रेंज अधिकारी मेधावी कृति ने बताया कि यह सप्ताह एक प्रयास है की कैसे हमारे आज की पीढ़ी को जंगलों में रहने वाले समस्त प्राणियों के समग्र व्यवस्था जिसे परिस्थितक तंत्र कहा जाता है से अवगत कराया जाए।अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने में डूबे इंसान को अब यह अंदाजा ही नहीं रह गया है कि वह अपने साथ-साथ लाखों अन्य जीवों के लिए इस धरती पर रहना कितना दूभर बनाता जा रहा है. हमने अपनी सुख-सुविधाओं और तथाकथित विकास के नाम पर धरती पर मौजूद संसाधनों का प्रबंधन और दोहन इस तरह से किया है कि दूसरे जीवधारियों के जीवन के आधार ही समाप्त हो गए हैं. 




विकास का सबसे बुरा शिकार वन हुए हैं. कितने ही पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं, तो कितनी विलुप्ति कगार पर हैं। जानवर को महज जानवर न समझें, बल्कि अपना अस्तित्व बनाए रखने का जरिया समझें पृथ्वी पर जीवन का विकास पर्यावरण के अनुकूल ऐसे माहौल में हुआ है, जिसमें जल, जंगल, जमीन और जीव-जंतु सभी आपस में एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं. प्रकृति ने धरती से लेकर वायुमंडल तक विस्तृत जैवविविधता को इतनी खूबसूरती से विकसित एवं संचालित किया है कि अगर उसमें से एक भी प्रजाति का वजूद खतरे में पड़ जाए तो सम्पूर्ण जीव-जगत का संतुलन बिगड़ जाता है।

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘पृथ्वी में देने की इतनी क्षमता है कि वह सबकी जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन पृथ्वी मनुष्य के लालच को नहीं पूरा कर सकती है.’ गांधीजी प्राणीमात्र को एकसमान मानते थे. उन्होने यह भी कहा था कि ‘मैं केवल मानव जाति के बीच ही भाईचारे अथवा उसके साथ तादात्म्य की स्थापना नहीं करना चाहूंगा, बल्कि पृथ्वी पर रेंगने वाले जीवों सहित समस्त प्राणिजगत के साथ तादात्म्य स्थापित करना चाहता हूं क्योंकि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं. इसलिए जीवन जितने रूपों में है, सब मूलतः एक ही हैं.’। अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभाते हुए हम इसका संतुलन भी बनाए रखना है। यही हमारा उद्देश्य है।

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