- बल्दी बग्वाल पर की जाती हैं गाय बैलो की पूजा: डॉ त्रिलोक सोनी।
थत्यूड। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भी अनेक परम्पराएं देखने को मिलती हैं जहां लोग बार त्योहारो पर विभिन्न पकवान बनाते हैं वही गांव के लोग अपने गाय बैलों, पशुओं व पेड़ पौधों की पूजा अर्चना करते हैं कई स्थानों पर दिवाली से पहले गाय बैलों की पूजा की जाती हैं जिसे बल्दी बग्वाल कहते हैं।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं हमारे गांव में दीपावली महा लक्ष्मी पूजन के पहले दिन बल्दी बग्वाल मनाई जाती हैं इस दिन जौ के आटा, चावल, झंगोरा, भट्ट, गहद की दाल, कटवाल के फूल, विंडा के पत्ते, पूरी, पकोड़े व थोड़ा हल्दी मिलाकर पकाया जाता हैं जिसे पिंडा कहते हैं उसके गोले बनाकर पूजा अर्चना कर पशुओं को खिलाया जाता हैं। डॉ सोनी कहते हैं गाय बैलों व पशुओं की पूजा अर्चना कर उन्हें पिंडा खिलाने को बल्दी बग्वाल कहते हैं। वही किरन सोनी कहती हैं बल्दी बग्वाल पर घर गांव में अपने पशुओं पर छापड़ लगाया जाता हैं।
आटा में थोड़ा हल्दी मिलाकर उसका घोल बनाकर गोल आकार के लिए गिलास से पशुओं पर लगाते हैं जिसे छापड़ कहते हैं इसका मतलब यह होता हैं कि हमने बल्दी बग्वाल पर अपने पशुओं की पूजा कर उन्हें पिंडा खिला दिया हैं। सोबन सिंह ने बल्दी बग्वाल को पूर्वजों की धरोहर कहते हुए कहा इसदिन हम अपने पशुओं के पांव धोते हैं उनके सींगों पर तेल लगाते हैं और फूल माला पहनाकर उनकी पूजा करते हैं ताकि हमारे पशु स्वस्थ रहे। बल्दी बग्वाल पर रोशनी देवी, सोनी देवी, सुमनी देवी, सीता, आशा आदि उपस्थित थे।