उत्तराखंडः सैकड़ों अफसर-कर्मियों की नौकरियों पर लटकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की तलवार
सरकार की इस कार्रवाई के लपेटे में उन कारिंदों के आने की ज्यादा संभावना है, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच चल रही है या फिर वे बीमारी की लंबी छुट्टी पर चल रहे हैं। सूत्रों की मानें तो अकेले लोक निर्माण विभाग में ही 80 से अधिक प्रकरणों में जांच चल रही है। इसी तरह सिंचाई, शिक्षा, ऊर्जा, पेयजल, शहरी विकास, आवास समेत कई अन्य विभागों में भी ऐसे कई प्रकरण हैं। सूत्रों के मुताबिक, सबसे पहले गाज ऐसे ही कर्मियों पर गिर सकती है। सरकार ने पूरी शक्ति के साथ सीआरएस को लागू किया तो सैकड़ों नकारा अफसर-कर्मचारियों को घर भेजा जा सकता है।
कर्मचारियों का ब्योरा
– 1.50 लाख से अधिक राजकीय कर्मचारी तैनात हैं विभागों
– 40 हजार से ज्यादा कर्मचारी निगमों व उपक्रमों में तैनात हैं
– 20 हजार से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी भी सेवाएं दे रहे हैं
ये बन सकते हैं सीआरएस के आधार
– जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच चल रही
– जिनकी पिछले कई सालों से वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट खराब है
– जो 50 पार हैं और बीमारी की छुट्टी पर ज्यादा रहते हैं
– जो कर्मचारी सेवा नियमावली के उल्लंघन में दोषी पाए
जिनके पास जो जिम्मेदारी है, उन्हें वह निभाना ही चाहिए। सरकार ने अधिकारी काम करने के लिए बनाए हैं। यदि कोई काम नहीं करेगा तो सरकार उन्हें घर भेजेगी। सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति का फैसला लिया है।
– त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री
हम मुख्यमंत्री के फैसले का स्वागत करते हैं। इससे कार्य संस्कृति में सुधार होगा और कड़ा संदेश जाएगा, लेकिन सरकार उन विभागाध्यक्षों पर कार्रवाई करे। जिनकी हठधर्मिता की वजह से कर्मचारियों को कार्य से विरत होना पड़ता है। सरकार का यह ऐतिहासिक कदम है।
– ठाकुर प्रहलाद सिंह, मुख्य संयोजक, उत्तराखंड कार्मिक शिक्षक आउटसोर्स संयुक्त मोर्चा
हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं, लेकिन सरकार को यह भी सुनिश्चित करे कि सीआरएस का दुरुपयोग न हो। यदि कर्मचारी सरकार से हजारों रुपये का वेतन प्राप्त करते हैं, तो उनकी भी यह जवाबदेही बनती है।
– पूर्णानंद नौटियाल, प्रांतीय प्रवक्ता, उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी समन्वय मंच