तत्कालीन सरकार ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के नाम से बल्लीवाला चौक, बल्लूपुर चौक, न्यू कैंट रोड, चांदमारी, तुनवाला चौक, श्यामपुर (प्रेमनगर), तेलूपुर, नेहरुग्राम, कैनाल रोड आदि स्थानों पर शहीद के नाम पर सड़कों का नामकरण किया था।
इन सड़कों को इंगित करने के लिए सड़क किनारे संगमरमर के शिलापट भी लगाए गए थे, लेकिन अब कई स्थानों पर शिलापट गायब हैं। राजधानी में शायद ऐसा कोई मार्ग हो जिसे कारगिल शहीद के नाम से पहचाना जाता हो। यहां तक कि सरकारी फाइलों में भी सड़कों का पुराने नाम ही अंकित हैं।
दून के रहने वाले वीर सपूत मेजर विवेक गुप्ता, स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर, राइफलमैन विजय भंडारी, नायक मेख गुरुंग, राइफलमैन जयदीप भंडारी, राइफलमैन नरपाल सिंह, सिपाही राजेश गुरुंग, नायक हीरा सिंह, नायक कशमीर सिंह, नायक देवेंद्र सिंह, लांस नायक शिवचरण सिंह, नायक बृजमोहन समेत 19 जांबाज कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
फाइलों में कैद हैं राज्य सरकार के वादे
कारगिल युद्ध में शहीद सैनिकों के परिवारों के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार ने कई घोषणाएं की थी। इनमें में केंद्र सरकार की ओर से की गई घोषणाएं तो लगभग पूरी हो गई हैं, लेकिन राज्य सरकार की ओर से की गई घोषणाएं आज तक भी फाइलों में कैद हैं।
वादे जो हुए पूरे और जो रह गए अधूरे
– शहीद की पत्नी को प्रतिमाह उचित पेंशन।
– माता—पिता को प्रतिमाह 5000 रुपये पेंशन।
– शहीद सैनिकों के बच्चों को छात्रवृत्ति व स्नातक तक निशुल्क शिक्षा।
– शहीद सैनिक की पत्नी व माता—पिता को ग्रीन कार्ड जारी।
अधूरे वादे
– शहीदों के आश्रिताें को ग्रीन कार्ड पर उचित मान-सम्मान देना।
– शहीद के माता-पिता को धारा 8/01 के तहत सम्मानित नागरिक की सूची में शामिल करना।
– अधिकारियों द्वारा शहीदों के परिवारों के घर जाकर समस्याएं सुनकर उनका निस्तारण करना।
– शहरी क्षेत्र में मकान बनाने के लिए प्लाट या ग्रामीण क्षेत्र में पांच बीघा भूमि देने।
– शहीद के नाम पर नजदीकी स्कूलों का नामकरण।
– निजी/पब्लिक स्कूलों में शहीद के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना।