ग्रामीणों ने उदड़ के पकाड़े, पूरी, पापड़ आदि तैयार किए। मेले में सांस्कृतिक नृत्य का भी आयोजन किया गया।
थत्यूड़। मौण मेला जौनपुर ब्लॉक की संस्कृति की एक अलग पहचान है। राजशाही के जमाने से ग्रामीण इस पर्व को मनाते आ रहे हैं। गुरुवार को सुबह 1 बजे अगलाड़ नदी में विशेष पूजा अर्चना के बाद टिमरू का पाउडर नदी में डाला गया जिस पर बच्चे, युवा व बुजुर्ग एक साथ मछली पकड़ने के लिए नदी में उतरें। मेले का शुभारंभ ढोल दमाउ,रणसिंघा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गुज के साथ प्रारंभ किया गया।
करीब 5 किमी लंबे क्षेत्र में हजारों की संख्या में लोग नदी में मछली पकड़ने उतरे।
ग्रामीण बडी संख्या में अगलाड नदी में मौण डालकर देर तक मछलियां पकडते हैं। मौण को नदी में डालने से मछलियां पकडने में आसानी होती है,नदी में इस पाउडर डालने से किसी भी जीव जंतु को हानि नहीं पहुंचती है। हर साल अलग अलग क्षेत्र से मौण लाई जाती है,इस बार मौण निकालने और इसे नदी में डालने की बारी पटटी अठजुला थी। इसकी तैयारी में लोग जुटे हुए थे। मेले में ग्रामीण मछलियों को कुंडियाड़ा,फटियाडा,जाल या फिर हाथों से पकडते हैं। बतादें कि मौण मेले का आयोजन टिहरी रियासत के वक्त से होता आ रहा है,तब मेले में टिहरी नरेश भी अपनी रानियों और लाव लश्कर के साथ आते थे,इसलिए इस मेले को राजमौण कहा जाता है। आपको बता दें कि एक बार ग्रामीणों में झगडा होने पर राजा ने मौण मेले पर प्रतिबंध लगा दिया था,लेकिन गांवों के प्रतिनिधियों ने मेले का आयोजन शांतिपूण ढंग से कराने का आश्वासन दिया,जिसके उपरांत राजा ने
फिर से इसके आयोजन की इजाजत दे दी। एक समय था जब अगलाड नदी में चार मौण मेले आयोजित होते थे,नदी के उपरी भागों में पहले तीन अन्य मौण मेले आयोजित किए जाते थे,जिनमें से दो घुराणु और मझमौण काफी प्रसीद्ध थे,मगर लोगों की घटती दिलचस्पी व पलायन के कारण ये तीनों मेले इतिहास बन चुके हैं। मेले में हजारों ग्रामीणों के अलावा पर्यटक भी काफी संख्या में पहुंचते हैं,इसके अलावा मछलियों की प्रजातियों का अध्ययन कर रहे विज्ञानी और शोधार्थी भी मेले में हर साल पहुंचते हैं। आपको बता दें कि इस बार अगलाड नदी में मौण मेला बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया।