नई दिल्ली। बैंकिंग सेक्टर में मजबूती लाने के लिए अब सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के विलय की योजना बनाई है। सूत्रों के अनुसार, इस साल सरकार कई आरआरबी का विलय कर सकती है। इस विलय के बाद सरकार तीन से चार आरआरबी को शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कराने की तैयारी में है। इसके लिए आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाया जाएगा।
राज्य सरकारों से मिली मंजूरी
सूत्रों के हवाले से पीटीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों के एकीकरण की प्रक्रिया जारी है और आरआरबी की संख्या को 45 से घटाकर 38 पर लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी कुछ और एकीकरण हो सकते हैं क्योंकि राज्य सरकारों की ओर इसके लिए मंजूरी मिल गई है। सूत्रों ने कहा कि राज्य के भीतर ही आरआरबी के एकीकरण से आरआरबी का ऊपरी खर्च कम होगा, प्रौद्योगिकी का महत्तम इस्तेमाल हो सकेगा। पूंजी आधार पर उनके परिचालन क्षेत्र का विस्तार होगा और उनकी पहुंच बढ़ेगी।
हाल ही में 21 बैंकों का एकीकरण
पिछले कुछ माह के दौरान विभिन्न राज्यों में 21 बैंकों का एकीकरण किया गया है। सूत्रों ने बताया कि तीन से चार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक आईपीओ लाने के पात्र हैं। उनका आईपीओ इसी साल आ सकता है। इन बैंकों की स्थापना आरआरबी कानून, 1976 के तहत छोटे किसानों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण क्षेत्रों के कारीगरों को ऋण और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए की गई थी। इस कानून में 2015 में संशोधन किया गया जिसके बाद इन बैंकों को केंद्र, राज्य और प्रायोजक के अलावा अन्य स्रोतों से भी पूंजी जुटाने की मंजूरी मिल गई।
आरआरबी में 50 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की
फिलहाल आरआरबी में केंद्र की 50 प्रतिशत, प्रायोजक बैंक की 35 प्रतिशत और राज्य सरकारों की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। संशोधित कानून के तहत हिस्सेदारी बिक्री के बावजूद केंद्र और प्रायोजक बैंक की कुल हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे नहीं आ सकती। बजट 2019-20 में आरआरबी के पुनर्पूंजीकरण के लिए 235 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।